भगतसिंह की डायरी के पन्ने
कोई दुश्मन नहीं? तुम कहते हो ,तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं ? अफ़सोस मेरे दोस्त ,इस शेखी में दम नहीं, जो शामिल होता है फर्ज की लड़ाई में, जिसे बहादुर लड़ते ही है उसके दुश्मन होते ही है .अगर नहीं है तुम्हारे तो वह काम ही तुच्छ जो तुमने किया है| तुमने झूठी कसमे खाने वाले होठ से प्याला नही छिना है, तुमने कभी किसी गलती को ठीक नहीं किया है,तुम कायर ही बने रहे लड़ाई में| _चार्ल्स मैके,747 एक शहीद की जेल नोटबुक p384