बिजली महगी जीवन सस्ता ,यह है सता का खेल
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बिजली अपने आप में कुछ भी पैदा नही करती बल्कि पैदा करने की ऊर्जा स्रोत मात्र है ,जो धमनियों में रक्त पर्वाहित जेसा कार्य करती है यह सस्ती ही नही होनी चाहिए बल्कि मुफ्त होनी चाहिए .यह महगाई का खेल कब तक चलेगा ,अर्थशास्त्र यह कहता है की जिस देस में प्राक्रतिक साधनों पर कब्जा किसका है वही इस बिमारी का समाधान कर सकता है ,उदाहरण स्वरूप राजस्थान में जब बिजली बोर्ड था तब घाटा 500 करोड़ का था ,अब घाटा 75000हजारकरोड़ का होगया ,कारण यह की भारत के सविधान में लिखा है की “राज्य कल्याणकारी संस्था हो गी लेकिन यह लोप है की कोन सी जनता के लिए होगी ‘जनता को दो जगह बाट दिया 1 सोषक और सोसित ,सोसको ने अपनी गुलाम सरकार को आदेस दिया की बिजली बोर्ड को तोड़ कर तीन भागो में बाट दिया जाए,उत्पादन(जनरेसन),वितरण (ट्रासमिसन )और विसू (ओ&म)एक उत्पादन करेगा ,दुसरा वितरण करेगा तीसरा बिजली खरीदेगा एवं मरमत भी देखेगा , जिससे हमारे मुनाफे पर जनता का ध्यान नही जाए , गुलाम सरकार ने कहा आप उत्पादन में आवो मनमर्जी की रेट लगावो सरकार खरीदेगी और तुम्हारे मुनाफे की गारंटी देगी चाहे हमें जनता पर कितने भी अत्याचार करना पड़े ,और अपने कोर्पेट मालिको को यह भी सुविधा दी की तुम्हे कोर्टो में नही जाना पडेगा इसलिए हमारे पास निठले अफसरों की एक फोज है उनकी कमेटी बना देते है उसका नाम रख दिया नियामन आयोग (इसे ही भेड़िया न्याय कहते है )यह सरासर डकेती है ,इन आर्थिक डकेतो को जनता ही मात दे सकती है .

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