दीपावली
       आज दीपावली है इस पर मेरे बहुत से दोस्तों और साथियो ने शुभकामनाय दी है कइयो ने फोन पर भी बात की जेसे हमारे सामने बधाई देने के अलावा कोई काम बचा ही नही है .सुभकामना देने से पहले आपको यह सोचना आवश्यक है की क्या तुम्हारी तरह मेरे घर पर भी वही खुसी का माहोल है या नहीं.फिर भी सुभकामनाए तो स्वीकार करनी ही पड़ेगी .
 हम लोग सिर्फ लीक पीटना जानते है या नकलची है ,हम किसी चीज की खोज खबर करते ही नहीं ,हमें यह पता ही नहीं है की दीपावली क्यों मनाई जाती है ,बच्चो को पढाया जाता है की इस दिन राम रावण को मार कर अयोद्या आये थे उस खुसी में दीपावली मनाई जाती है लेकिन घरो में जब पूजा होती है उसमे सिर्फ गणेस,लक्ष्मी व् सरस्वती का पाठा ही की पूजा की जाती है ,राम और हनुमान दोनों गायब है ,धर्म हमेसा ही लोगो को मानसिक गुलाम बनाने का काम करता है चाहे कोई सा भी हो ,
दीपावली क्यों मनाई जाती है इसकी गहराई में जाए तब सामने आता है की आदमी पशुपालन युग में जानवर की दावत करता था ,क्रषि अवस्था में फसल पक  कर खलियान निकाल कर किसान अनाज घर लाता तो वह खुसी मनाता ,अगली अवस्था में यह त्यौहार ठगों व् ब्यापारियो(ब्यापारी वह जो स्वयम कोई उत्पादन नहीं कर दुसरे की पैदावार की सिर्फ दलाली करता है )  से उनसे छीन  लिया ,इस त्यौहार को बढ़ा कर पाच दिन कर दिया और पुक्ता व्यवस्था कर दी की किसान को मुर्ख बनाकर केसे उसकी फसल को बाजार में मगाया जा सके.पहले दिन तेरस को पुराण यह आख्यान देते है की इस दिन समुद्र मंथन में धन्वन्तरी वेद्य निकले थे इस लिए यह उनके नाम से धन तेरस कहलाती है ,व्यापारियों ने डाकोतो(ज्योतिसियो)को लालच देकर मीडिया रूपी भाँड़ो द्वारा परचारित करवाया गया की इस दिन की खरीददारी  अति शुभ रहेगी ,पुलिश प्रसासन ऐसे तो रोड पर चालान करता है ,इन पाच दिनों में इन दलालों की जी भर कर सेवा करता है ,यदि तेरस को कोई खरीद दारी से वंचित  रह जाता है वह कांति दिवाली को पूरी कर  सकता है ,फर्क इतना ही है की गन्ने का एक डंठल किसान से पचीस या पचास पेसे में खरीदता है वह व्यापारी पचास रूपये तक बेचता है क्योकि  डाकोतो ने बता दिया की इससे लक्ष्मी राजी होती है .एक तरफ सरकार पर्यवरण बचाने के नाम पर करोडो खर्चती  है दीपावली के दिन सबसे ज्यादा पर्यावरण खराब किया  जाता है वाह मेर देस की जनता अपनी बर्बादी पर खुसी जाहिर करती है .

 पुराणों में दीपावली के बारे में जो लिखा है वह यदि में लिखू तब मेरे बहुत से दोस्त आग बबूला हो जाए गे इसलिए दोस्तों की खुसी में खलल नहीं डालना चाहता .दीपावली के  दुसरे दिन घरो के सामने गोबर इकठा कर उस पर दिया जलाते है तथा जो दियो में तेल बच जाता है उसे जानवरों के सिंग चोपड़े जाते है ,अगले दिन भेया दूज के रूप में यह त्यौहार सम्पूर्ण होता है कास्तगार एवं मजदूर  फिर खाली जेब उधार लेने के चक्र में घूमना  शुरु कर देता है ,इस मोके पर  लम्पट सर्वहारा भी जुआ,चोरी कर अपना शगुन मनाते है .आप से विनती है की स्वयम की बर्बादी पर खुसी मनाना बंद करदो तो अचा है अन्यथा आपकी मर्जी . 

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